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Hindi News / politics / See also reservation in the mirror of Umesh Sharma
राजेंद्र खंडेलवाल
खुलासा फर्स्ट… इंदौर।
उमेश शर्मा का निधन किसी पार्टी या वैचारिक प्रवाहमयता की क्षति नहीं है, बल्कि इस बहाने आरक्षण की व्यवस्था को भी देखा जाना चाहिए। उमेश अपनी पार्टी में इस बात के शिकार हुए कि कई नेताओं को उनकी कार्यक्षमता और विषयों की गहरी समझ के साथ उसे अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता से खतरा महसूस होता था, इसलिए उनसे कमजोर नेताओं को आगे बढ़ाया गया और आज वें पार्टी से काफी कुछ पा चुके हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं का भला किया या नहीं, अपने समर्थकों को ही उपकृत किया या करवाया, ये अलग बात है, लेकिन इस चक्कर में जो प्रतिभावान था वो उपेक्षित रह गया। उसका प्रतिभावान होना ही उसका राजनीतिक दुश्मन बन गया। इसी ने उसके लिए सारे रास्ते बंद कर दिए। ये ज्ञान कि एक रास्ता बंद होता है तो कई रास्तें खुल जाते हैं, उमेश के मामले में सही नहीं बैठा।
वैसे भी ज्ञान की बातें कहने-सुनने के लिए ही अच्छी होती है, पालन करने के लिए नहीं। तो, उमेश के मामले में कोई भी अच्छापन सही नहीं रहा। उनकी प्रतिभा और योग्यता को जान-बूझकर ठुकराया जाता रहा। भाजपा में ऐसा केवल उमेश के साथ हुआ है, ऐसा नहीं है। उनके अलावा, बाबूसिंह रघुवंशी, स्व. विष्णुप्रसाद शुक्ला (इंदौर में पार्टी को तन-मन-धन से खड़ा करने वाले को निष्कासित भी कर दिया गया), सत्यनारायण सत्तन (जो किसी भी मौके पर किसी भी नेता को नहीं छोड़ते जो कि उनकी पीड़ा है), भंवरसिंह शेखावत (जो इंदौर में भाजपा के संस्थापकों में से हैं लेकिन पार्टी पर हावी नेताओं ने उन्हें दरकिनार किया), गोपीकृष्ण नेमा (जो दो बार विधायक जरूर रहे लेकिन बाद में सिर्फ वादों के शिकार होकर रह गए), गोविंद मालू (जो प्रदेश प्रवक्ता पद तक पहुंचे, खनिज निगम के उपाध्यक्ष भी रहे पर बाद में किनारे लगा दिए गए) जैसे सैकड़ों नेता और कार्यकर्ता हैं जो पार्टी में बिना किसी विपरीत आचरण के सिर्फ और सिर्फ पार्टी के लिए सोचते रहे, लेकिन संगठन से खुद को बड़ा समझने वाले और कार्यकर्ताओं के बजाय समर्थकों को हुजूम साथ लेकर चलने वाले नेताओं ने उन्हें पार्टी से किनारे लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वों चाहते तो बगावत कर सकते थे और ऐसे नेताओं को उनकी ही शैली में जवाब भी दे सकते थे, लेकिन वें पार्टी को मां के समान समझते हैं और इसीलिए पार्टी को नुकसान न पहुंचे, ये सोचकर कभी पार्टी को अखाड़ा नहीं बनने दिया। इसे आज भी उनकी कमजोरी समझा जाता है। बहरहाल, उमेश शर्मा जैसे प्रतिभावान और क्षमतावान नेताओं को कमजोर कर किनारे कर देने की परिपाटी और अपने अयोग्य और कार्यकर्ताओं को मजदूर समझने वाले समर्थकों को आगे बढ़ाकर उन्हें पद दिलाकर नेताओं ने आरक्षण की याद दिला दी है कि कैसे कोई 60 प्रतिशत अंक वाला पद पा जाता है और 90 प्रतिशत वाला टापता रह जाता है। वो पूर्णत: योग्य है लेकिन आरक्षण ने उसके सपनों को चूर-चूर कर दिया। उमेश के साथ पार्टी के नेताओं ने जो कुछ किया, वैसा ही आज की आरक्षण व्यवस्था कर रही है। एक चुटकुला या यूं कह लें कि आरक्षण पर कड़ी-तीखी टिप्पणी है कि एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री के पूछने पर कहा कि आपके यहां आरक्षण है, तभी तो हमें आपके देश के योग्य-प्रतिभावान युवा मिल रहे हैं और हमारा देश तरक्की कर रहा है। इसलिए, आज पार्टी के नेता इस बात पर चिंतन करें कि फिर कभी किसी उमेश शर्मा की प्रतिभा-योग्यता का अपमान न हो और उसे पूरा सम्मान मिले। ठीक वैसे ही देश में भी आरक्षण व्यवस्था पर पुनरविचार हो और योग्य को उसका पूरा हक दिया जाए। योग्य सही पद पद बैठेगा तो समाज की उन्नति ही होगी।
जो लोग इस पट्ठेबाजी और अयोग्यों को सिर्फ इसीलिए पद व टिकट दिलवाते हैं वो कांग्रेस का हश्र समझ लें। पार्टी का पतन इसी वजह से हुआ है कि वहां नेताओं ने पार्टी को तज कर खुद और खुद के समर्थकों को मौके ब मौके प्रमुखता दी। उमेशजी की मौत एक सबक है, यदि कोई सीखना चाहे।
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