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Hindi News / indore / Sarkar what enmity with BJP youth
पद के इंतजार में पार्टी के युवाओं को क्यों बूढ़ा रहे सरकार और संगठन?
जिनका वोट मिलना, उनकी कर रहे चिंता, जो पसीना बहाकर वोट दिला रहे उनका क्या?
• प्रदेश के निगम, मंडल, प्राधिकरण पड़े हैं खाली
• अब तक न एल्डरमैन, न डायरेक्टर
• दीनदयाल अंत्योदय समितियों में भी सन्नाटा, सरकारी समितियों की नियुक्तियां रोक रखी
• चुनावी साल आ गया लेकिन न सरकार को चिंता, न संगठन को फिक्र
उन युवाओं की चिंता में ‘सरकार’ दुबली हुई जा रही है जिनके वोट की दरकार है, लेकिन उन युवाओं की फिक्र नहीं जो वोट दिलवा रहे हैं। बूथ पर पसीना बहाता भाजपा का यूथ आज भोपाल की सरकारी यूथ पंचायत को फिर टकटकी लगाए हुए देख रहा हैं। ठीक वैसे ही जैसे वो सरकार और संगठन की तरफ चार साल से टकटकी लगाए देख रहा है कि वो कब अपने हक का पद पाएगा? या पद के इंतजार में यूं ही बुढ़ाता जाएगा और उम्र के कथित क्राइटेरिया को क्रॉस कर जाएगा।
नितिन मोहन शर्मा… खुलासा फर्स्ट… इंदौर
‘सरकार’ आपको सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुए आज 16 बरस हो रहे हैं। बीच के 13 महीने छोड़ दे तो आप एकमुश्त जमे हुए हो। कई जमे हुए को जमींदोज कर आपकी हुकूमत बदस्तूर जारी हैं। नतीजतन आप देशभर की भाजपा के इकलौते ऐसे नेता हो चले हो जो इतने लंबे समय से सत्ता के शीर्ष पर कायम हैं। “कुर्सी पकड़’ के इस काम मे आपने प्रदेश में भी सबसे लंबे समय तक ‘सरकार’ बने रहने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया हैं। प्रदेश के युवाओं की चिंता को लेकर आप आज शहीद दिवस के इस पुनीत अवसर पर राजधानी के मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में यूथ पंचायत की जाजम बिछा रहे हो। इस जाजम के जरिये आप प्रदेश की युवा नीति को आज लांच करने जा रहे हैं। युवाओं के थोकबंद वोट के लिए।
अच्छी बात हैं। युवा आपके दल को वोट देंगे। आप उनकी चिंता कर रहे हो। लेकिन अपने ही दल के उन युवाओं की भी थोड़ी बहुत फिक्र कर लेते जो आपके लिए पसीना बहाकर वोट दिलवाते हैं। प्रदेश के युवाओं की बेरोजगारी को लेकर आप चिंतित है लेकिन अपने ही दल के योग्य युवाओं के “राजनीतिक रोजगार’ की चिंता कौन करेगा? वे तो बेरोजगार बैठे हैं, 4 साल से। आपकी इस पारी में ही नहीं बीती दोनों-तीनों पारियों में आपके दल के युवा के ये ही हाल हैं। आपका पूरा कार्यकाल बीत गया लेकिन राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हुई तो नहीं हुई। आप वोट देने वाले युवाओं की तो चिंता कर रहे हैं, लेकिन वोट दिलाने वाले ‘समर्पित सिपाहियों’ की कोई परवाह ही नहीं कर रहें। उन्हें आप पद के इंतजार में टकटकी लगाए रखने का काम में लगाए रखे हुए हैं, वो भी चुनावी साल में...!! जब एक-एक कार्यकर्ता अहम होता है। लेकिन आपके दल का यूथ तो बूथ पर काम करने के बावजूद अपने हक के पद की आस में बुढ़ाता जा रहा है। पद पाना उसका हक हैं, भिक्षावृत्ति नहीं।
...और आप है कि आपके ही दल के युवाओं के हक की तमाम राजनीतिक नियुक्तियां रोककर बैठे हैं। समूचे प्रदेश की दीनदयाल अंत्योदय समितियां खाली पड़ी हुई हैं, जिनमें सैकड़ों योग्य और निष्ठावान कार्यकर्ता उपकृत हो जाते। आपके “आराध्य देव’ के नाम से बने इस प्रकल्प को लेकर आपकी ये बेरुखी समझ से परे हैं..!! पूरे प्रदेश के प्राधिकरण खाली पड़े हैं। न अध्यक्ष बनाए जा रहे हैं और न संचालक मंडल। जिन इक्का-दुक्का शहरों में आपने अध्यक्ष बनाने की “मेहरबानी’ की, वहां आज तक संचालक मंडल की नियुक्तियां नहीं की।
ये ही हाल विभिन्न निगम मंडलों के हैं, वहां भी सन्नाटा पसरा हुआ है। जहां अध्यक्ष दे दिया, वहां अध्यक्ष को काम करने वाली टीम रोक ली गई। नगरीय निकाय चुनावों में हुई पार्टी की दुर्गति से भी आपने सबक नहीं लिया। महापौर मुद्दे पर कई नामचीन शहरों से हाथ धोने के बाद भी अब तक प्रदेश में एल्डरमैन की नियुक्तियों के दूर-दूर तक अते-पते नहीं हैं। न सरकार और संगठन स्तर पर इसे लेकर कोई हलचल नजर आती हैं। नगरीय निकायों में झोन अध्यक्षों के भी कहीं अते-पते नहीं। ये ही दुर्गति उन विभिन्न सरकारी महकमों की समितियों के भी है जिनके जरिये सैकड़ों नहीं, हजारों पार्टी वर्कर्स को काम मिल जाता, सम्मान मिल जाता। लेकिन न ‘सरकार’ और न संगठन के कान पर जू रेंग रही हैं। लिहाजा पद की आस में पार्टी का युवा नेतृत्व उम्र के आपके कथित क्राइटेरिया को क्रॉस करता जा रहा हैं।
‘सरकार’ ने तो रणनीति ही बना ली है कि देना कुछ नहीं, बस टूंगाते रहना हैं। सरकार की 16 बरस की "सत्ता की साधना’ शायद इसी रणनीति के चलते निर्बाध रूप से जारी हैं, लेकिन संगठन क्या कर रहा है? संगठन अध्यक्ष है, महामंत्री है। अब तो एक क्षेत्रीय संगठन मंत्री भी है जो सीधे संघ से जुड़ा है। बावजूद ये हाल..!! संगठन मुखिया तो स्वयं को “खाटी संगठननिष्ठ’ कहते नहीं अघाते, फिर वे क्या कर रहे हैं? कार्यकर्ता के मान-सम्मान के मामले के तो वे एकमेव सूत्रधार हैं। फिर किस बात की परबसता? या ‘संगठन’ को ‘सरकार’ का साथ और टूंगाने की रणनीति रास आ गई कि इससे सत्ता और संगठन पर पकड़ बनी रहती है और वो भी मजबूती के साथ। अगर ये ही मूलमंत्र मान लिया गया है तो फिर देश के अन्य राजनीतिक दलों के सामने "पार्टी विथ ए डिफरेन्स’ का शोर बेमानी हैं।
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे युवा रणबांकुरों की शहादत के इस अवसर पर सरकार और संगठन को इस बात का जवाब देना चाहिए कि वो कब तक अपने दल के संभावनाशील लीडर्स को पद का इंतजार करवाते हुए “शहीद’ करते रहेंगे। शहीद दिवस के मौके पर पार्टी वर्कर्स के लिए इतना जवाब तो बनता है न? आप नहीं देंगे जवाब तो कोई बात नहीं। मिशन 2023 सब जवाब मांग लेगा। आपका टकटकी लगाया कार्यकर्ता ये ही कह रहा हैं। 16 बरस की सत्ता के शोर के जश्न में ‘ सरकार’ और ‘ संगठन’ को ये सुनाई देगा?
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