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Hindi News / indore / Minister Scindia and Shivraj headache
अरविंद तिवारी
कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया जिस अंदाज में अपनी लाइन आगे बढ़ा रहे थे, वह अब मध्यप्रदेश सरकार में शामिल उनके खेमे के मंत्रियों के कारण धुंधलाने लगी है। भाजपा के ही नेता सिंधिया से जुड़े मंत्रियों के भ्रष्टाचार के किस्से उदाहरण के साथ बताने लगे हैं। चूंकि सरकार वापस बनवाने में सिंधिया की अहम भूमिका रही है, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी इन मंत्रियों के भ्रष्टाचार को अनदेखा कर रहे हैं। बात यहीं खत्म नहीं हो रही है, चूंकि इन मंत्रियों पर मुख्यमंत्री अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं, इसलिए अब दूसरे मंत्री भी बेलगाम होते जा रहे हैं। मंत्रियों का यह भ्रष्टाचार सरकार के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है।
18 साल का ‘विकास’ और बात 84 के दंगों की : मध्यप्रदेश में 18 साल से भाजपा की सरकार है और सत्ता व संगठन दोनों का दावा है कि इस दौर में मध्यप्रदेश का कायाकल्प हो गया। स्वाभाविक है भाजपा नेताओं के भाषणों में बरसने वाला यही विकास चुनाव का मुख्य मुद्दा भी होना चाहिए। प्रदेश में जैसा भाजपा नेता कह रहे हैं, यदि वैसा ही सबकुछ हुआ है तो फिर किसी दूसरे मुद्दे की जरूरत ही नहीं, लेकिन अचानक 84 की दंगों की बात सामने आने लगी है और कमलनाथ को निशाने पर लिया जा रहा है। कमलनाथ पर इस आक्रमण की कमान संगठन प्रमुख वीडी शर्मा ने संभाली है। देखना यह है कि चुनाव आते-आते विकास से और कौन-कौनसे मुद्दे आगे निकलते दिखते हैं।
विजयवर्गीय की बेबाकी, निशाने पर मंत्री और कार्यकर्ता बाग-बाग : मध्यप्रदेश में सरकार और संगठन भले ही कैलाश विजयवर्गीय की कद्र न करे, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए तो वे आज भी हीरो हैं। पिछले दिनों भोपाल में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में विजयवर्गीय ने जिस तरह मंत्रियों को घेरे में लिया और प्रभार के जिलों में पाला छूने के अंदाज में जाने की बात कही। कार्यकर्ताओं को ऐसा लगा मानो किसी ने उनके दिल की बात कह दी हो। वैसे यह हकीकत है कि प्रदेश के ज्यादातर मंत्री इन दिनों जिस तरह अपने प्रभार के जिलों में नेताओं और कार्यकर्ताओं से दूरी बनाकर चल रहे हैं, वह उनमें एक बड़े असंतोष का कारण बन रहा है। हालांकि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को बुढ़ऊ कहने के बाद सोशल मीडिया पर विजयवर्गीय ट्रोल भी हुए हैं।
बेटे की बगावत और मुख्यमंत्री के निशाने पर पशुपालन मंत्री: पिछले दिनों भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मौजूदगी में हुए एक कार्यक्रम में पशुपालन मंत्री प्रेमसिंह पटेल की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बन गई। कार्यक्रम पशुपालन विभाग का ही था, लेकिन इसमें मंत्री की गैर मौजूदगी के चलते गोपालन बोर्ड के चेयरमैन को ज्यादा तवज्जो मिली। कहा यह जा रहा है कि मुख्यमंत्री इन दिनों पशुपालन मंत्री इससे बहुत खफा हैं। कारण यह है कि पिछले दिनों हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बड़वानी जिले में मंत्री जी ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ अपने बेटे को मैदान में उतार दिया था। बेटा जीत तो गया, लेकिन मंत्री जी सीएम के निशाने पर आ गए। यह बगावत उनका विधानसभा टिकट भी खतरे में डाल सकती है।
अफसर पर भारी पड़ गया टेंट-तंबू लगाने वाला ठेकेदार : सरकार के आयोजनों में टेंट-तंबू लगाने वाला भोपाल का एक ठेकेदार कितना पावरफुल है, इसका अंदाज इसी से लगाया जाता जा सकता है कि अपने मन-मुताबिक काम न होने के कारण उसने साफसुथरी छवि वाले एक आईएएस अफसर का तबादला ही करवा दिया। सरकार के प्रचार-प्रसार से वास्ता रखने वाले विभाग में पदस्थ रहे उक्त अफसर ने जब ठेकेदार को होने वाले भुगतान को लेकर कुछ मुद्दे ‘बड़े साहब’ के सामने रखे थे। वे चाहते थे कि एक समिति बनाकर पूरी पारदर्शिता के साथ इस विषय को निराकृत किया जाए। ठेकेदार को यह पसंद नहीं था। इसके बाद जो हालात बने उसी का नतीजा है कि अफसर पर ठेकेदार भारी पड़ गया।
इस बार घी थाली के बाहर गिरने की स्थिति में : 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले जब भी महेश जोशी के सामने अश्विन जोशी और पिंटू जोशी के बीच तीन नंबर के टिकट को लेकर खींचतान का मामला उठता था, वे एक ही बात कहते थे कि कुछ भी हो घी थाली में ही गिरेगा, लेकिन इस बार ऐसे हालात दिख नहीं रहे हैं। छोटे जोशी यानि पिंटू मानने को तैयार नहीं हैं। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता उनकी पीठ पर हाथ रख चुके हैं। अश्विन जोशी के अपने अलग तेवर हैं। वे इंदौर तीन से एक बार फिर किस्मत आजमाना चाहते हैं। दोनों पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और भाइयों की खींचतान से तीन नंबर के समीकरण भी गड़बड़ाते नजर आ रहे हैं। तय है कि इस बार घी थाली में नहीं गिरेगा।
अब बात मीडिया की
मध्यप्रदेश में अपने को मजबूत करने में लगे पत्रिका ने अब अपना सारा फोकस 14 से 40 वर्ष की उम्र के पाठकों पर केंद्रित कर लिया है। इसके लिए हर संस्करण में विशेष तैयारी चल रही है। पत्रिका द्वारा करवाए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि अभी भी अखबार 14 से 40 वर्ष के पाठकों की जरूरतों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है।
नईदुनिया इंदौर में इन दिनों तीन जासूसों की बड़ी चर्चा है। ये तीन जासूस अखबार के तीन अलग-अलग विभागों में सेवाएं दे रहे हैं। कहां क्या हो रहा है, इस पर इनकी पूरी नजर रहती है। आखिर ऐसी स्थिति में क्यों बनी, यह कोई समझ नहीं पा रहा है। वैसे इस सबका फायदा दो संपादकीय प्रभारी की व्यवस्था लागू होने के बाद राज्य संपादक को जरूर मिल रहा होगा।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद द सूत्र अब राजस्थान में भी एंट्री कर रहा है। द सूत्र 1 जुलाई से राजस्थान में काम शुरू कर देगा। आनंद पांडे, हरीश दिवेकर, सुनील शुक्ला और विजय मांडगे की चौकड़ी जिस दबंग शैली में काम कर रही है, वह मीडिया जगत के साथ ही नेताओं व नौकरशाहों के बीच चर्चा का विषय है।
नईदुनिया के सिटी चीफ जितेन्द्र यादव इन दिनों दफ्तर नहीं आ रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि मार्निंग मीटिंग में हुई गहमागहमी के बाद यादव ने यह कदम उठाया। हालांकि घोषित तौर पर इसके पीछे अस्वस्थता को कारण बताया जा रहा है। नईदुनिया की रिपोर्टिंग टीम के बीच गुटबाजी अब खुलकर सामने आ गई है।
दैनिक भास्कर में लंबे समय तक सेवाएं देने के बाद नईदुनिया इंदौर में अच्छी पारी खेल रहे रिपोर्टर गजेन्द्र विश्वकर्मा फिर से भास्कर पहुंच गए हैं। गजेन्द्र एजुकेशन बीट खासकर प्रोफेशनल्स कोर्सेस से जुड़ी खबरों पर महारत हासिल रखते हैं।
अभी तक बंसल न्यूज में सेवाएं दे रहे दीपक मिश्रा और शुभांगी सिंह ने अब संस्थान को अलविदा कह दिया है। दीपक ने जल्दी ही लांच होने वाले बीएस टीवी को ज्वाइन किया है तो शुभांगी अब न्यूज 18 का हिस्सा होंगी।
चलते चलते
इंदौर के वे कौन अपर कलेक्टर हैं, जो इन दिनों अपनी एक महिला मित्र के कारण बड़े परेशान हैं। यह महिला मित्र उनका पीछा नहीं छोड़ रही है और मामला इतना बिगड़ गया है कि अब अपर कलेक्टर सहमे-सहमे से रहते हैं। वैसे शुरुआती दिनों में दोनों के बीच बहुत प्रगाढ़ता रही, पर पता नहीं बाद में बात क्यों बिगड़ गई। वैसे इनका पुराना रिकार्ड बहुत साफ-सुथरा है।
पुछल्ला
दिग्विजय सिंह के सामने जिस अंदाज में अश्विन जोशी और पिंटू जोशी में विवाद हुआ और छोटे जोशी बड़े भाई के खिलाफ भड़के उसने राजा को भी चौंका दिया। राजा का चौंकना इसलिए भी स्वाभाविक था कि पिछली बार यानि 2018 के चुनाव में ऐन वक्त पर उनकी मदद के कारण ही अश्विन का टिकट पक्का हो पाया था। अब वे राजा की बात मानने को भी तैयार नहीं हैं।
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