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जय शिवा सरदार की... : हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के 350 वर्ष... भगवा वाहिनी मैदान में

02-06-2023 : 02:04 pm ||

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक पर देश में सालभर होंगे आयोजन


हिंदू राष्ट्र के शोर के बीच भगवा ब्रिगेड का हिंदवी साम्राज्य पर फोकस


हिंदवी स्वराज्य, छत्रपति शिवाजी के जरिये सालभर चलेगी हिंदू राष्ट्र की बात


नितिन मोहन शर्मा… खुलासा फर्स्ट… इंदौर

जय शिवा सरदार की-जय राणा प्रताप की..! इस जयघोष के बगैर भगवा वाहिनी का दिन मुकम्मल नहीं होता हैं। शाखाओं पर ये जयघोष स्वयंसेवक में राष्ट्र निष्ठा-धर्म निष्ठा का प्राण फूंकता हैं। जोश जगाता हैं। अब ये ही जयघोष हिंदुस्तान में पूरे वर्षभर गूंजेगा। अवसर है उस हिंदवी साम्राज्य के 350 साल पूर्ण होने का, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अनेक कंटिकापूर्ण परिस्थितियों के बीच हिंदुस्तान में स्थापित किया था। जब देश के एक बड़े हिस्से में मुगलिया सल्तनत का जोर था। शिवजी राजे के हिंदवी स्वराज स्थापित करने से हिंदू गौरव और स्वाभिमान का भाव एक बार फिर से प्रज्ज्वलित हुआ, जिसने आखिरकार मुगलिया आतंक का अंत भी किया।


छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसे इकलौते राजा रहे जिन्होंने हिदू साम्राज्य के रूप में शपथ ली और राज्याभिषेक कर अपना राज स्थापित किया। अतीत के इसी गौरव भाव को एक बार फिर से देश के समक्ष जगाया जाएगा। सालभर आयोजन होंगे। इस आयोजनों के जरिये ये स्थापित करने का पुरजोर प्रयास होगा कि पूर्ण हिंदवी स्वराज्य का स्वप्न शेष है, जिसे पूर्ण करना हैं। भगवा वाहिनी ने हिंदवी स्वराज्य के इस 350 वें साल के लिए देशव्यापी तैयारी की हैं। आगाज आज यानी 2 जून शुक्रवार से हो रहा हैं। शिवाजी प्रतिमा से आज सुबह शुभारंभ हुआ हैं। मालवा प्रांत के सभी 28 जिलों में इसे लेकर कार्यक्रम होंगे। इसी साल मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के अलावा 2024 का आम चुनाव भी है। ये आयोजन लोकसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद तक चलेगा। ये देखना दिलचस्प रहेगा कि हिंदू राष्ट्र के मचे शोर के बीच हिंदवी स्वराज्य का ये अभियान क्या असर दिखाता हैं? चुनाव में भी और देश के जनमानस में भी। 


शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक और हिंदू पदपादशाही की स्थापना के विजयोत्सव को बड़े स्तर पर पूरे देश के साथ मालवा प्रांत में मनाया जाएगा। प्रांत के सभी 28 जिलों में नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की समितियों का गठन किया जा रहा है। प्रांतीय समिति और जिला समितियों के द्वारा हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के 350 वर्ष पूर्ण होने पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसमें व्याख्यान, परिसंवाद, शोध-संगोष्ठियां होगी। प्रांत के गांव-गांव तक राज्याभिषेक के विषय को ले जाने के लिए प्रभातफेरी, वाहन रैली, गृहसंपर्क, शिवाजी के जीवन चरित्रा पर प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाएगा। शिवाजी के प्रेरणादायी जीवन प्रसंगों पर आधारित नाट्य मंचन, कथा-प्रवचन, चलचित्र प्रदर्शन और गीत-संगीत आधारित कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।


विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में भी विभिन्न गोष्ठियों, परिचर्चा, सेमिनार व छात्रों के बीच व्याख्यान सत्रों का आयोजन इस निमित्त होगा। विद्यालयों में भी शिवाजी के राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना को चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से व्याख्यान सहित विभिन्न कार्यक्रम जैसे भाषण, प्रश्नमंच, चित्रकला और अभिनय प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।


शिवाजी राजे का हिंदवी स्वराज्य

हिंदवी स्वराज्य, सुशासन का पर्याय सिद्ध हुआ। जीजामाता और विजयनगर साम्राज्य के ग्रंथों से प्रेरणा प्राप्त कर शिवाजी ने ‘प्रजा के राज’ की कल्पना को मूर्त रूप दिया। कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए राज्य व्यवहार कोष की रचना की और अष्टप्रधानमंडल के माध्यम से लोक कल्याण और सामान्यजन के जीवन को स्वावलंबी, स्वाभिमानी बनाने में हिंदवी स्वराज्य का स्थान महत्वपूर्ण है। भारत की सर्वश्रेष्ठ भू-राजस्व प्रणाली हिन्दवी स्वराज्य में विकसित हुई, जिसमें न्यूनतम कर और किसानों की सुविधा का ध्यान रखा गया। पहली बार वैतनिक सैन्य व्यवस्था का गठन किया, जिसमें युद्ध के उच्चादर्शों का पालन किया जाता था। शिवाजी ने नौसेना पर भी विशेष ध्यान दिया। नारी सम्मान और सामाजिक सद्भाव शिवाजी के राज्य की प्रमुख विशेषता थी।


हिंदवी स्वराज्य के समय देश की स्थिति

सतत आक्रमणों, युद्धों और देश के अलग-अलग क्षेत्रों में पराजय से जनित निराशा के कारण गुलामी की मानसिकता देश के अधिकांश क्षेत्र पर छा रही थी। पृथ्वीराज चौहान की पराजय से लेकर देवगिरी में यादवों और विजयनगर साम्राज्य के पराभव का प्रभाव सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर दिखने लगा था। विदेशी मुगलों के साथ होने वाले समझौतों एवं संधियों को भारत के साथ संधि-समझौतें माना जाने लगा था। अपने आपको भारतीय ना मानकर तुर्क मानने वाले मुगलों ने भारत की जनता को दोयम दर्जे का बना दिया था। कई राज्य मुगलों के मनसबदार बनते जा रहे थे। जजियाकर जैसे अमानवीय करों और हिंदुओं के साथ भेदभाव व हिंदू मंदिरों को तोड़ना मुगलों की शासन व्यवस्था का घोषित लक्ष्य बन गया था। ऐसी विकट परिस्थितियों में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदू पदपादशाही की स्थापना की थी। पूरे हिंदू समाज को संगठित करके छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल सत्ता को चुनौती दी। ताकि मुगल अर्थात् भारत के शासक ऐसा मिथक तोड़ दिया और विदेशी शक्तियों के सामने शिवाजी के भारत के वास्तविक शासक होने के दावें को स्थापित किया।


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