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Hindi News / indore / It enough for Mama... Tantya Mama
सालभर से चल रहा आदिवासी समाज का शोर, सालभर और चलेगा
रातापानी बैठक के बाद ही खुलासा फर्स्ट ने कर दिया था खुलासा- सरकार की चिंता अब आदिवासी समाज
प्रदेश के 'मामा' के अब सब कुछ टंट्या मामा हो चुके है। टंट्या मामा ओर उनका समाज अब
नितिन मोहन शर्मा … खुलासा फर्स्ट… इंदौर
'सरकार' के नए 'तारणहार' बनकर उभर रहे है। जल जंगल जमीन पर वनवासी समाज का पहला और आखरी अधिकार का नारा तेजी से बुलंद हो रहा है। बिरसा मुंडा का गौरव जोरशोर से स्थापित किया जा रहा है। टंट्या मामा की जन्मस्थली पर कार्यक्रम हों रहे हैं। प्रतिमा लगाई जा रही है। चौराहे का नामकरण किया जा रहा है। गांव देहात जंगल से लेकर शहरों में गौरव यात्राएं निकाली जा रही है। शहरों में पड़ने वाले आदिवासी समाज के युवाओं में पैठ बढ़ाई जा रही है। इंदौर में एक लाख वनवासी बन्धु जुटाए जा रहे हैं। सरकार और प्रशासन मैदान में उतरा हुआ है। मिशन 2023 का आगाज जो हो चुका है...!
अपनी कार्यशैली से न केवल प्रदेश बल्कि जगत मामा बने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के लिए अब सबकुछ जनजातीय गौरव सूर्यवीर टंट्या मामा के इर्दगिर्द सिमट गया है। टंट्या मामा और उनका समाज ही अब ‘सरकार' के लिए मिशन 2023 का तारणहार बन गया है। नतीजतन पूरी सरकार वनवासी समाज की घेराबंदी में जुट गई है।
प्रतीक के रूप में टंट्या मामा को आगे रखकर सारी रणनीतिक जमावट हो रही है। वन और जंगल ही नहीं, इंदौर जैसा शहरी क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं। यहां एक चौराहा तो टंट्या मामा के नाम कर ही दिया गया है और अब उसी चौराहे पर टंट्या मामा की आदमकद प्रतिमा ने आकार ले लिया है, जिसका लोकार्पण 4 दिसंबर को स्वयं मामा यानी शिवराजसिंह करेंगे। प्रदेशभर का वनवासी समाज भी इंदौर में जुटाया जा रहा है। दावा तो एक लाख लोगों का किया जा रहा है। नेहरु स्टेडियम में बड़ा कार्यक्रम होगा। इस आयोजन में आदिवासी समाज को बताया जाएगा कि भाजपा सरकार ने इस वर्ग के लिए क्या-क्या अब तक किया है और भविष्य में क्या करने जा रही है। अफसरों को तो ये तक ताकीद दी गई है कि सरकार की योजनाओं से लाभांवित वनवासी परिवारों को विशेष रूप से इस आयोजन तक लेकर आए, ताकि वें सबके बीच अपने समाज को बता सके कि वें किन योजनाओं से लाभांवित हुए हैं। कमिश्नर से लेकर कलेक्टर और गांव के कोटवार से लेकर पटवारी तक इस आयोजन के लिए मैदान में उतार दिए गए हैं। मिशन 2023 को हर हाल में फतह करने निकली भाजपा के लिए इस बार आदिवासी बेल्ट सबसे अहम हो चला है। 2018 में इसी बेल्ट में पार्टी ने बड़ा नुकसान उठाया था। इस बार समय से पहले इसी वर्ग में सब चाकचौबंद करने की शुरुआत हुई है।
आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष का दबाव बढ़ा
रातापानी के जंगल में राष्ट्रीय संगठन मंत्री की अगुवाई में हुई अहम बैठक में इस रणनीति को अंजाम दिया गया था, तब खुलासा फर्स्ट ने ही ये खुलासा किया था कि अब सरकार का फोकस आदिवासी सीटों पर होगा। उस वक्त ये भी खुलासा किया था की पार्टी चुनावी साल में प्रदेश संगठन की कमाम किसी आदिवासी समाज के नेता को दे सकती है। उस बैठक के बाद पार्टी की निरंतर चल रही एक्सरसाइज से अब ये संभावना बलवती होती जा रही है कि गुजरात चुनाव के बाद प्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल हो सकता है और आदिवासी नेता केंद्र में आ सकते हैं। भाजपा एमपी में आज तक इस वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पाई है। यहां तक कि युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष पद भी आज तक आदिवासी समाज को नहीं दिया गया है। जयस की उभरी चुनौती से पार पाने के लिए सरकार में इस पर गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है।
सामान नागरिक संहिता- आदिवासी
पेसा एक्ट से लेकर कल बड़वानी में सीएम की बहू विवाह प्रथा के खिलाफ प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने का एेलान भी इसी रणनीति का हिस्सा है। आदिवासी समाज में भी बहू विवाह प्रथा का चलन बताया जाता है। सीएम ने मंच से एक शादी की बात कही। बीते एक साल से सरकार के केंद्र में ये समाज है। बीते साल पातालपानी पर फोकस कर सरकार ने टंट्या मामा को आगे कर भील समुदाय में पैठ बनाने की रणनीतिक कवायद शुरू की थी जो सालभर बाद टंट्या मामा की प्रतिमा अनावरण तक आ पहुंची है। पेसा एक्ट के जरिये सीएम की आदिवासी समाज की चिंता करते हुए चेतावनी भरे वक्तव्यों की झड़ी लगी हुई है। ये ही नहीं, जनजातीय गौरव यात्राओं से लेकर पेसा एक्ट का प्रचार और सीएम का टंट्या मामा की खंडवा के पास स्थित जन्मस्थली पर जाकर कार्यक्रम करना इसी रणनीति का हिस्सा है।
आरएसएस के बिरसा मुंडा, सरकार के 'मामा'
आदिवासी समाज के बीच वनवासी अंचलों के आरएसएस की साधना तो बरसों बरस से चल रही थी। 2001 का झाबुआ में हुआ हिन्दू संगम संघ के इस वर्ग के बीच कार्य का विराट प्रकटीकरण था। वनवासी कल्याण आश्रमों के जरिये आरएसएस का काम बस्ती-फालियों से आगे तक बढ़ गया है, जिसे सेवा भारती ने और बल दिया है। आरएसएस ने वनवासी समुदाय के लिए बिरसा मुंडा को प्रतीक बनाकर हाल ही में इंदौर में बड़ा आयोजन किया। लालबाग में हुए इस आयोजन में उमड़ी भीड़ ने सबको चौंका दिया, जिसमें बड़ी संख्या शहरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज की थी। खासकर उन नौजवानों की जो शहर में पड़ लिख रहे हैं या कामकाज कर रहे हैं। एक तरफ सरकार, दूसरी तरफ आरएसएस। दोनों का फोकस इसी वर्ग पर एक साथ चल रहा है जो ‘जगत मामा' का काम आसान करता जा रहा है।
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