Download Our App from
Hindi News / politics / Controversy over Modi s speech
लाल किले से हर पंद्रह अगस्त को प्रधानमंत्री लोग जो भाषण देते हैं, उनसे देश में कोई विवाद पैदा नहीं होता। वे प्रायः विगत वर्ष में अपनी सरकार द्वारा किए गए लोक-कल्याणकारी कामों का विवरण पेश करते हैं और अपनी भावी योजनाओं का नक्शा पेश करते हैं लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के लगभग एक घंटे के हिस्से पर किसी विरोधी ने कोई अच्छी या बुरी टिप्पणी नहीं की लेकिन सिर्फ दो बातें को लेकर विपक्ष ने उन पर गोले बरसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेसी नेताओं को बड़ा एतराज इस बात पर हुआ कि मोदी ने महात्मा गांधी, नेहरु और पटेल के साथ-साथ इस मौके पर वीर सावरकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम क्यों ले लिया? चंद्रशेखर, भगतसिंह, बिस्मिल आदि के नाम भी मोदी ने लिये और स्वातंत्र्य-संग्राम में उनके योगदान को प्रणाम किया। क्या इससे नेहरुजी की अवमानना हुई है? कतई नहीं।
फिर भी सोनिया गांधी ने एक गोल-मोल बयान जारी करके मोदी की निंदा की है। कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने सावरकर को पाकिस्तान का जनक बताया है।उन्हें द्विराष्ट्रवाद का पिता कहा है। इन पढ़े-लिखे हुए नेताओं से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे सावरकर के लिखे ग्रंथों को एक बार फिर ध्यान से पढ़ें। पहली बात तो यह है कि सावरकर और उनके भाई ने जो कुर्बानियां की हैं और अंग्रेजी राज के विरुद्ध जो साहस दिखाया है, वह कितना अनुपम है। इसके अलावा अब से लगभग 40 साल पहले राष्ट्रीय अभिलेखागार से अंग्रेजों के गोपनीय दस्तावेजों को खंगालकर सावरकर पर लेखमाला लिखते समय मुझे पता चला कि अब के कांग्रेसियों ने उन पर अंग्रेजों से समझौते करने के निराधार आरोप लगा रखे हैं। यदि सावरकर इतने ही अछूत हैं तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुंबई में बने उनके स्मारक के लिए अपनी निजी राशि से दान क्यों दिया था? हमारे स्वातंत्र्य-संग्राम में हमें क्रांतिकारियों, गांधीवादियों, मुसलमान नेताओं यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना के योगदान का भी स्मरण क्यों नहीं करना चाहिए? विभाजन के समय उनसे मतभेद हो गए, यह अलग बात है।
कर्नाटक के भाजपाइयों ने नेहरु को भारत-विभाजन का जिम्मेदार बताया, यह बिल्कुल गलत है। मोदी की दूसरी बात परिवारवाद को लेकर थी। उस पर कांग्रेसी नेता फिजूल भन्नाए हुए हैं। वे अब कुछ भाजपाई मंत्रियों और सांसदों के बेटों के नाम उछालकर मोदी के परिवारवाद के आरोप का जवाब दे रहे हैं। वे बड़ी बुराई का जवाब छोटी बुराई से दे रहे हैं। बेहतर तो यह हो कि भारतीय राजनीति से ‘बापकमाई’ की प्रवृत्ति को निर्मूल करने का प्रयत्न किया जाए। विपक्ष को मोदी की आलोचना का पूरा अधिकार है लेकिन वह सिर्फ आलोचना करे और मोदी द्वारा कही गई रचनात्मक बातों की उपेक्षा करे तो जनता में उसकी छवि कैसी बनेगी? ऐसी बनेगी कि जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचती है। विपक्ष में बुद्धि और हिम्मत होती तो भाजपा के इस कदम की वह कड़ी भर्त्सना करता कि उसने 14 अगस्त (पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस) को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया। अब तो जरुरी यह है कि भारत और पाक ही नहीं, दक्षिण और मध्य एशिया के 16-17 देश मिलकर ‘आर्यावर्त्त’ के महान गौरव को फिर लौटाएं।
No Comment Yet!!
Copyright © 2022 Khulasa First Pvt. Ltd., All Rights Reserved
Design & Developed By Web Endeavours