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Hindi News / politics / Beware Sarkar wake up now
...उन दोनों मासूमों को क्या पता कि उनका जन्मदाता ही उनके प्राण हर रहा है। वे तो गटक गए जहर को भी रसना समझकर। देखा न फोटो... कितना हृदय विदारक। जैसे दोनों मासूम गहरी नींद में सो रहे हो। एक का तो हाथ भी वैसे ही ऊंचा रह गया, जैसे आमतौर पर बच्चों का सोते हुए रहता है। बगल में मां की लाश और सामने फांसी के फंदे पर लटके पिता। क्या मजबूरी रही होगी? कितना दर्द होगा जिंदगी में? कर्ज का मर्ज कैसे कारुणिक दृश्य पैदा कर गया कि घटना के 3 दिन बीतने के बाद भी आंखों के सामने और जेहन से एक हंसते-खिलखिलाते परिवार का यूं काल कवलित होना जा ही नहीं रहा है।
कौन दोषी है इसका? वो व्यक्ति जो परिवार को मारकर खुद मर गया? या वो हालात जिसके कारण उसने कर्ज लिया या वो कंपनी के रूप में साहूकार जिससे कर्ज लिया? या वो वसूली के तौर-तरीके जिसमें कर्ज लेने वाले की पारिवारिक जिंदगी दांव पर लगा दी जाती है? या सरकार? उसका सिस्टम? जिम्मेदारों की जान समझकर भी आंख फेर लेने की कार्यशैली?
आखिर इनमें से कौन है दो मासूमों और उनके जन्मदाता की मौत का जिम्मेदार? इसी शहर में चला था न सूदखोरों के खिलाफ अभियान, जो पूरे प्रदेश तक पहुंचा था। तो फिर ये सड़क किनारे कर्जा देने वाले कौन लोग हैं? कहां से आए हैं? ऐसे कैसे रास्ते चलते कर्ज दे रहे हैं? कौन है इनके पीछे? व्यक्ति या कंपनी या सिस्टम... कौन है? क्या हैं इनके नियम-कायदे कर्ज देने के? कौन से डॉक्यूमेंट के आधार पर कर्ज दिया जाता है? सड़क पर पेड़ की छांव के नीचे एक बाइक पर बैनर टांगकर इस तरह कर्जा बांटने का लाइसेंस कहां से और किसने जारी किया? और इस तरह कर्ज का कारोबार करने के नियम-कायदे कब तय हो गए? इसकी जानकारी जनसामान्य तक पहुंचाई गई?
जो कर्ज बांट रहे हैं, वे कैसे वसूल रहे हैं? इसकी कोई तहकीकात की गई? लाइसेंस देने वालों में कर्ज वसूली के कायदे-कानून इन कंपनियों से मांगे थे? मांगे थे तो क्या जवाब आया किसी को पता है? रास्ते चलते कर्ज बांटते ये लोग सरकार के किस विभाग के तहत काम कर रहे थे? संबंधित विभागीय अधिकारी इन कंपनियों से संपर्क में हैं या लाइसेंस देकर सीधे सादे शहरी ग्रामीण को नोचने के लिए सड़क पर खुला छोड़ दिया?
सवालों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है, लेकिन जवाब एक भी नहीं। इंदौर जैसे महानगर में इन कंपनियों के वसूली के ये हाल है तो सोचिए दूरदराज ग्रामीण इलाकों में ये कर्ज बांटने वाली कंपनियां कर्ज वसूली में क्या गुल खिला रही होगी? कोरोनाकाल के तीन साल ने यूं ही आम आदमी की जिंदगी दूभर कर दी है। कामकाज के अवसर ही खत्म नहीं हुए, बल्कि नौकरियों से भी लोग हाथ धो बैठे। उस पर ये कमर तोड़ महंगाई। निम्न आय वर्गीय परिवार के लिए गृहस्थी चलाना दुश्वार होने पर ही लोग ऐसे कर्ज के चक्कर मे फंस रहे हैं और तंत्र आंख मूंदे कुर्सी की पुश्त पर सिर टिकाए बैठा है।
फटाफट लोन का ये खेल जिंदगियां लील रहा है। वसूली के लिए अब कर्जदार के दरवाजे पर बाहुबली नहीं जाते, बल्कि कर्जदार की इज्जत तार-तार कर वसूली की जाती है। भागीरथपुरा में मरने वाला भी तो इसी अंदेशे और लोकलाज से डरकर मर गया कि नहीं मरूंगा तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाऊंगा। ये वो लिखकर गया है।
..तो साहब बहादुरों। मरने वाले के लिखे पर ही अब मैदान पकड़ लो। करो न जांच की वसूली के क्या तरीके ये कंपनियां इस्तेमाल कर रही हैं? कर्जदार का पूरा डाटा कब्जे में लेकर क्या वाकई में ये लोन बांटने वाले उसके निजी जीवन पर हमला करना शुरू कर देते हैं या फिर मरने वाला झूठ बोल गया? एक साथ 4 मौत भी आपके जमीर को झकझोरती नहीं?
सदैव आपका ही
अंकुर जायसवाल
(पक्का इंदौरी)
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