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राष्ट्रपति के बहाने सावरकर पर वार : असली वजह क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है

25-05-2023 : 01:21 pm ||

संपादकीय

नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की असली वजह वह नहीं है, जो विपक्षी दल बता रहे हैं। उन्होंने बहाना राष्ट्रपति का बनाया है। वे राष्ट्रपति के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साध रहे हैं। असली वजह क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है। इस दिन 28 मई को सरकार ने उद्घाटन के लिए चुना है। यह बात तुष्टिकरण के चैंपियनों को कैसे हजम हो सकती है? इसलिए बहुत ही कुटिलतापूर्वक बहिष्कार के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का चुनाव किया गया। विपक्षी दलों ने 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए हिंदू समाज के विरुद्ध खुले युद्ध का ऐलान कर दिया है।


वे चुनाव हिंदुओं के वोट से नहीं, उसे तोड़कर, जातियों में विभाजित कर जीतना चाहते हैं। राष्ट्रपति मुर्मू आदिवासी समाज से हैं। उन्हें मोहरा बनाकर विपक्ष आदिवासी और हिंदू समाज के अन्य वर्गों में विवाद और विद्वैष पैदा करना चाहता है। आदिवासियों और दलितों को शेष हिंदू समाज से अलग करने के जीतोड़ प्रयास चल रहे हैं। संसद भवन का विवाद तो बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा है। विपक्ष को घर बैठे यह मुद्दा मिल गया। वह इसका फायदा क्यों न उठाए?


केंद्र सरकार को इससे बिल्कुल भी विचलित होने की जरूरत नहीं है। उसे 28 मई को ही यह कार्यक्रम करना चाहिए और इतना ही नहीं अगले गणतंत्र दिवस पर सावरकर को भारत रत्न भी देना चाहिए। विपक्ष ने जिस युद्ध का ऐलान किया है मोदी सरकार उसे निर्णायक मोड़ तक ले जाए। सावरकर से द्वैष का कारण यह है कि वे हिंदुत्व समर्थक थे। हिंदू समाज को सशक्त देखना चाहते थे। उन्होंने कहा था देश में दो राष्ट्र हैं। इससे उनका तात्पर्य दो भिन्न संस्कृतियों से था। वे चाहते थे हिंदू समाज सशक्त बने ताकि इस राष्ट्र की मूल आत्मा के विरुद्ध आचरण करने वाली संस्कृति को दबाया जा सके। कांग्रेस ने कुटिलता से इस वक्तव्य को भारत विभाजन से जोड़ दिया। उसने उन्हें जिन्ना की पंक्ति में खड़ा कर भारत विभाजन का दोषी ठहरा दिया। कांग्रेस के इस कृत्य का उद्देश्य विभाजन के वास्तविक दोषियों को बचाना भी था। सावरकर ने हिंदू महासभा की स्थापना कर राजनीतिक रूप से भी हिंदू समाज को सशक्त बनाने का प्रयास किया था। कांग्रेस को उससे मुकाबला करना पड़ा। यही कारण है कांग्रेस सावरकर की सबसे बड़ी दुश्मन है। उसकी ही शह पर अन्य विपक्षी दल सावरकर का विरोध करते हैं। इस बार भी कर रहे हैं। कुटिलतापूर्वक इस बार सावरकर कर नाम नहीं लिया जा रहा है।


हिंदू समाज को समग्र रूप से इस पर विचार करना चाहिए। उसे इन घटनाओं को केवल राजनीतिक घटनाक्रम मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इनका देश के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। इस प्रकार का प्रत्येक घटनाक्रम देश की भावी दशा-दिशा तय करेगा। उन पर गहराई से मंथन-विश्लेषण कर आने वाले चुनावों में ऐसी शक्तियों को पराजित करना ही उसका लक्ष्य होना चाहिए।        


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