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सौम्य महापौर का पहला रौद्र रूप शांत-सहज कलेक्टर राजा के खिलाफ सामने आया
{ सूर्यदेव नगर में मंदिर तोड़ने की कार्रवाई पर कलेक्टर को पत्र लिखकर जताया रोष, पत्र की भाषा कड़क, 4 दिन बाद पत्र का खुलासा हुआ
{कलेक्टर को महापौर की हिदायत- बाले बाले निगम अफसरों को न दें दिशा निर्देश, आइंदा से ध्यान रखंे बगैर जनप्रतिनिधियों को बताए कोई भी कार्रवाई न करें
ऐसा तो कभी इंदौर में हुआ नहीं। न सुना, न देखा, न पढ़ा। महापौर और कलेक्टर आमने-सामने। मुद्दा उस मंदिर का जिसे जमींदोज किया गया। इस पर ’मित्र’ का कोप ’राजा’ पर फूटा। दोनों शांत, सहज और सरल। सौम्य भी। फिर भी तल्खी सामने आई। एक पत्र के जरिये जिससे ये भी खुलासा हो गया कि इंदौर में कुछ ठीक नहीं चल रहा। प्रशासकीय तालमेल के अभाव का खुलासा करने वाली इस घटना ने जिलाधीश कार्यालय के साथ-साथ शिवराज सरकार के लिए भी असहज स्थिति पैदा कर दी है जो पहले से ही ब्यूरोक्रेसी से लाड़ लड़ाने के आरोपों का सामना कर रही हैं।
नितिन मोहन शर्मा… खुलासा फर्स्ट… इंदौर
...आखिरकार, शांत और सौम्य महापौर पुष्यमित्र भार्गव का क्रोध फूट ही पड़ा। वह भी उन जिलाधीश महोदय इलैया राजा पर जो महापौर जैसे ही शांत-सहज और सरल हैं। महापौर का गुस्सा सूर्यदेव नगर में मंदिर तोड़ने की कार्रवाई से जुड़ा हैं। महापौर ने इस पूरे मामले में कलेक्टर को दोषी माना। उन्होंने पत्र लिखकर रोष जाहिर किया। पत्र की भाषा महापौर के मिजाज के ठीक विपरीत हैं। उन्होंने मंदिर विध्वंस की कार्रवाई को शहर में तनाव फैलने और लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति से जोड़ा। कलेक्टर को हिदायत भी दी कि आइंदा से ऐसी कोई भी कार्रवाई में आप बाले-बाले निगम अफसरों को दिशा निर्देश न देंवे। मुझे बताए और जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बगैर कोई कार्रवाई नहीं करें। मंदिर जैसे संवेदनशील मसले पर भी आपने इस बात का पालन नहीं किया, जिससे क्षेत्रीय रहवासियों और धार्मिक संगठनों में आक्रोश की स्थिति पैदा हुई। शहर में तनाव फैला और लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति पैदा हो सकती थी।
महापौर का इस तरह से कड़ी भाषा में कलेक्टर को पत्र लिखने के मामले ने समूचे शहर को चौंका दिया हैं। ऐसा इंदौर में आज तक नहीं हुआ। न ऐसी भाषा में किसी महापौर ने किसी कलेक्टर को पत्र लिखा। पत्र भी 19 मई को लिखा जिस दिन मंदिर पर कार्रवाई हुई। सूत्र बताते हैं कि मंदिर पर कार्रवाई की जानकारी मिलने पर उन्होंने उसी वक्त फोन कर कलेक्टर सहित अन्य आला अफसरों पर रोष जाहिर कर दिया था। कलेक्टर को फोन पर भी महापौर ने कड़े शब्दों में आपत्ति दर्ज कराई थी। लग रहा था मामला यहीं तक सिमट गया, लेकिन 4 दिन बाद अब ये पत्र सामने आ गया जिसने प्रशासकीय गलियारों में हलचल पैदा कर दी हैं। सरकार के लिए भी ये असहज करने जैसी स्थिति पैदा कर दी जो पहले से ही ब्यूरोक्रेसी से बेतहाशा लाड़ दुलार के आरोपों का सामना कर रही है और अपने ही दल के बड़े नेताओं के निशाने पर हैं।
पत्र की भाषा बता रही है कि महापौर ने आक्रोश में ये लिखा और उसी दिन लिखा जिस दिन वे बेहद गुस्से में थे। तभी तो वे पत्र में ये लिखने से नहीं चुके कि मुझे बताया गया कि ये कार्रवाई निगम अफसरों ने की, लेकिन जब मैंने वस्तुस्थिति जानी तो पता चला आपने निगम अधिकारियों को कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। आपके द्वारा धार्मिक स्थल तोड़ने जैसे संवेदनशील मुद्दे को मेरे अथवा अन्य जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में लाए बिना निगम के अधिकारियों को निर्देश देना अत्यंत आपत्तिजनक हैं। आपके इस कार्य के कारण शासन-प्रशासन की छवि धूमिल हुई हैं। इस प्रकार की कार्रवाई लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत भी हैं। अतः भविष्य में ये सुनिश्चित किया जाए कि इस प्रकार की कोई भी घटना अब न होने पाए। कोई भी कार्रवाई जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में लाए बगैर न की जाए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए।
• सिर्फ खुलासा फर्स्ट के पास ये पत्र जो महापौर ने कलेक्टर को लिखा।
प्रशासकीय तालमेल के अभाव का खुलासा
ये पत्र महापौर ने 19 मई को लिखा, लेकिन कलेक्टर कार्यालय में ये 23 मई को पहुंचा। पत्र पर आवक लिपिक के हस्ताक्षर 23 तारीख है, जबकि पत्र पर महापौर ने अपने हस्ताक्षर के बाद 19 मई तारीख दर्ज की हैं। अब ये देखना दिलचस्प है कि कलेक्टर राजा इस पत्र का क्या जवाब देते हैं? जवाब देते हैं या नहीं? ये भी देखना दिलचस्प होगा। ये सब बाद की बात है, लेकिन इस पत्राचार ने इंदौर जैसे प्रदेश के बड़े शहर में प्रशासकीय तालमेल के अभाव का सरेआम खुलासा जरूर कर दिया हैं। वो भी चुनावी साल में, जब शिवराज सरकार में ये शोर मचा है कि अधिकारी किसी की सुन नहीं रहे हैं और सरकार भोपाल से लेकर दिल्ली तक सफाई देती फिर रही हैं।
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