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Hindi News / politics / After the mayor Vijayvargiya was heavy in the selection of the chairman
नितिन मोहन शर्मा । खुलासा फर्स्ट… इंदौर
आखिरकार निगम सभापति के चयन में भी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की ही पसंद को ही मंजूरी मिली। विजयवर्गीय के खास मुन्नालाल यादव निगम के सभापति मुकर्रर किए गए। सभापति के लिए पार्टी ने 48 घंटे चिंतन-मंथन किया। विधानसभावार पार्षदों से रायशुमारी भी की गई। पार्टी की स्थानीय कोर कमेटी की बैठक भी हुई। विधायकों ने अपनी पसंद के नाम दिए। इसके लिए पार्षदों का सहारा लिया गया। रविवार देर रात तक चली इस कवायद के बाद सोमवार सुबह भोपाल ने मुन्नालाल यादव के नाम पर स्वीकृति दे दी। एक वक्त निरंजनसिंह चौहान का नाम लगभग तय मान लिया गया था, लेकिन चौहान का नुकसान पार्टी के पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता के कारण हो गया। चौहान और गुप्ता में एक लंबे समय से तलवार खिंची हुई थी। विधानसभा 1 में चौहान को ही गुप्ता का प्रबल विरोधी माना जाता था, लेकिन गुप्ता के चुनाव हारने के बाद दोनों के बीच फिर से दोस्ती हो गई। ये दोस्ती ही अब आड़े आ गई और चौहान सभापति बनते-बनते रह गए।
इंदौर से दूर सात समंदर पार होने के बावजूद सभापति चयन में विजयवर्गीय का दखल रहा और उन्होंने बाहर बैठकर अपनी रणनीति को अंजाम दिया। पार्टी के प्रदेश महामंत्री और इंदौर संभाग के प्रभारी भगवानदास सबनानी इस काम के लिए दो दिन से इंदौर में डेरा डाले हुए थे। सबनानी की अगुआई में सभापति चयन की एक्सरसाइज हुई। सबसे रायशुमारी के बाद सबनानी ने भोपाल नाम भेजे, जहां से आज सुबह यादव के नाम का लेटर जारी हुआ।
लड्डा, उदावत, चौहान भी थे रायशुमारी में
निगम चुनाव में जिस तरह कैलाश विजयवर्गीय ने अपने अधिकार का उपयोग कर लगभग तय डॉ. निशांत खरे के नाम को खारिज कर पुष्यमित्र भार्गव की महापौर टिकट की राह आसान की थी, उसी तरह सभापति चयन में भी विजयवर्गीय ताकतवर बनकर उभरे। मुन्नालाल यादव को पार्षद का टिकट ही नहीं मिल रहा था। स्थानीय विधायक रमेश मेंदोला यादव को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे। पार्टी की नई गाइडलाइन के मुताबिक मेंदोला किसी युवा चेहरे को आगे करना चाह रहे थे, लेकिन विजयवर्गीय अड़ गए थे। अब वे यादव को सभापति भी बनवा लाए।
रायशुमारी ने साबित कर दिया कि इस बार पार्षदों के मामले में विधायकों ने अपनी पसंद के अलावा किसी अन्य नाम को आगे नहीं आने दिया। रायशुमारी ने साबित कर दिया कि विधायकों की राजी-मर्जी से पार्षद बाहर नहीं जा सकते। नतीजतन पार्षदों में वही नाम आगे किया, जो उनके विधायक ने जंचाकर भेजा था। एक नंबर विधानसभा में पार्टी का कोई विधायक नहीं है। लिहाजा यहां से सुदर्शन गुप्ता से जुड़े पार्षदों ने निरंजनसिंह चौहान का नाम सुझाया। विधानसभा 4 के पार्षदों ने लड्डा का नाम रखा। विधानसभा 5 से राजेश उदावत का नाम लिया गया। विधानसभा 2 और 3 ने मुन्नालाल यादव का संयुक्त नाम जारी कर सभी विधायकों के समीकरण बिगाड़ दिए, क्योंकि दो विधानसभा क्षेत्रों ने एक ही नाम पर मुहर लगाई, जिससे यादव का दावा मजबूत हो गया।
विजयवर्गीय के वीटो को नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे और आईडीए अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा का भी साथ मिला। इस मुद्दे पर “मुख्यमंत्री गुट’ से जुड़े स्थानीय नेताओं की चल नहीं पाई। अन्यथा अब तक इंदौर में होने वाले बड़े फैसले में इसी गुट को तवज्जो मिलती रही है। सभापति चयन ने ये संदेश भी दिया कि अब शहर में विजयवर्गीय गुट फिर से पावर सेंटर बन गया है। फिलहाल तो महापौर भी उन्हीं के कोटे में दर्ज है। अब सभापति भी इसी गुट का हो गया।
मुन्नालाल यादव के चयन ने साफ कर दिया कि पार्टी भले ही पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, लेकिन अनुभव को दरकिनार नहीं किया का सकता। यादव 4 बार पार्षद रह चुके हैं। हालिया नगरीय निकाय चुनाव में अनुभव को दरकिनार करने का जमकर शोर मचा था। पार्टी ने इस बार गलती नहीं की और यादव के नाम को अनुभव के आधार पर मंजूर कर लिया। इससे आईडीए बोर्ड और एमआईसी में भी अनुभवी नेताओं का रास्ता खुल गया है।
सभापति-नेता प्रतिपक्ष दो नंबर से
नगर सरकार के दो अहम पद पर एक ही विधानसभा से दो नेता पदस्थ हुए हैं। कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष के लिए चिंटू चौकसे का चयन किया। चौकसे का भी जन्म और कर्म क्षेत्र विधानसभा 2 ही है। चौकसे इस क्षेत्र में कांग्रेस का बड़ा और जिताऊ चेहरा हैं। वे भाजपा के इस गढ़ में 15 साल से चुनाव जीत रहे हैं। खुलासा फर्स्ट ने चौकसे और विनीतिका यादव के नाम नेता प्रतिपक्ष में आगे किए थे। चौकसे नेता प्रतिपक्ष बने तो विनीतिका निगम सरकार में मुख्य सचेतक बनी हैं। विनीतिका को उप नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता अरुण यादव और संजय शुक्ला लॉबिंग कर रहे थे।
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